• २०८२ बैशाख १४ आइतबार

किताब

बसन्त चौधरी

बसन्त चौधरी

मैंने अक्सर महसूस किया है
कि, मैं जब भी किताबों की
दुनिया में प्रवेश करता हूँ,
तो खिल उठते हैं रंग-बिरंगे
भावनाओं के अनगिनत फूल
जिनमें शामिल होते हैं
कभी तो संघर्षों के पहाड,
कभी निराशा के
अथाह असीमित सागर,
किन्तु यह अधिक समय तक
टिकते नहीं क्योंकि,
अगले ही क्षण
आकर सँभाल लेती हैं
बाधाओं को पार करने की
अनुभवों की अनन्त
उत्तम उक्तियाँ उन्हीं पन्नों से ।

कई बार इन्हीं किताबों के मुडे
पन्नों के बीच से
बिखर जाती हैं अपरिमित
यादों की खुशबू,
किताबों के बीच वर्षों से दबे
सूखे पुष्प की हँसी के साथ ।
निकल आती हैं सुखद साथ की
कुछ परछाइयाँ और
बतियाने लगती हैं मुझसे
सामने ला खडा करती हैं
अतीत के झरोखे से
कुछ खट्टी-मीठी, अल्हड-सी यादें,
सुहावनी, मनभावनी ।

जो समा जाना चाहती हैं मुझमें
और आहिस्ता-आहिस्ता मैं
उपवन, पहाड, सुगन्ध और
यादों से भरी पंक्तियों में
रूपान्तरित हो जाता हूँ ।
और फिर मैं, मैं नहीं रहता
बन जाता हूँ एक पूरी किताब ।

साभार: अनेक पल और मैं


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(चौधरी विशिष्ट साहित्यकार हैं ।)