पूछते हो जमीर क्या है
गर्वीले हिमालय को देखते हो
जो सिर उँचाकिए
सीना ताने खडा है
और अपने बडप्पन का आभास दिलाता है
ऐसा दीखता है मानो सारे का सारा
आकाश उसने अपने कंधे पर टेक रखीहो
लेकिन क्षण भर को जरा सोचो तो सही
अगर जरा सी जमीन अपनी जगह से खिसक जाए
तो समूचे का समूचा हिमालय कहाँ चला जाएगा
पताही न चले कि वह कहाँ जाएगा
यही है जमीन का जमीर
डा. अहिल्या मिश्र, हैदराबाद
वरिष्ठ साहित्यकार