• २०८१ मंसिर २८ शुक्रबार

जब देश रोता है

बसन्त चौधरी

बसन्त चौधरी

सिर्फ़
अपनी स्वार्थ-पूर्तिकी ख़ातिर
निर्ममतापूर्वक ये कथित नायक
दिनदहाड़े दल के दलदलमें
देश को डूबो रहे हैं,
यह वक़्त संगीन तो है ही ।
मगर
विश्वास है कि जब तक एक भी देशभक्त ज़िंदा रहेगा
नहीं कुहकेगी छाती
विलुप्त नहीं होगी ।
खो नहीं जाएगा पूर्वका  क्षितिज
उगती रहेगी संभावनाओं की सुबह !

निमेष भरके लिए ही सही
एक पवित्र काल काफ़ी है
महाप्रलय को रोकने के लिए
आत्मविश्वास से भरा
एक ईमानदार कंधा ही काफ़ी है
पूरे देश का बोझ ढोने के लिए ।

हिमालयके  हृदय में भी  है
बड़वाग्नि !
वीर नेपाली  उठेगा
और चढ़ेगा उसी बड़वाग्नि की काठी पर
मुझे पूर्ण विश्वास है
अपने
इस सुन्दर सपने पर !

(साभार: वसंत- हिन्दी कविता-संग्रह)


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(चौधरी विशिष्ट साहित्यकार हैं ।)