• २०८२ आश्विन १, बुधबार

गजल

काँटो के बीच मासूम फूल खिला
बिन सोचे समझे क्या मिलेगा सिला

काँटों से होगी उसकी सुरक्षा या
बनेगे वही उसकी मौत का किला ।

बड़ी हिम्मत दिखा, मुस्कुराता रहा
न की शिकायत कभी, न किसी से गिला

फूल देख चेहरा सबका खिल गया
एक बार फिर जीने का सबक मिला

इरादे हमारे भी मजबूत हुए ।
चट्टान को ना, कोई सकता हिला


सारिका अग्रवाल, विराटनगर, नेपाल