• २०८२ कार्तिक २१, शुक्रबार

इतिहास गवाह है

रामनिवास ‘मानव’

रामनिवास ‘मानव’

उसकी निगाह अलमारी पर गई, तो देखा, रवि ने उसकी सारी किताबों तथा कई दूसरी ज़रूरी चीजों को, बेतरह एक ओर खिसका कर, वहां अपना बस्ता जँचा दिया है । उसे बच्चे की इस हरकत पर गुस्सां तो नहीं आया, पर पूछ लिया, ‘रवि महाशय, तुमने मेरी चीज़ें उधर क्यों खिसका दी हैं ?’
‘मेरा बस्ता ठीक से नहीं आ रहा था ना, इसलिए ।’ बच्चे ने सहज भाव से उत्तर दिया ।
बच्चे का उत्तर सुनकर उसे लगा, जैसे वह बूढ़ा हो गया है और रवि ने, उसकी चारपाई कमरे से निकालकर, बाहर बरामदे में डाल दी है, क्योंकि कमरे में उसकी चारपाई ठीक- से जो नहीं आ रही थी ।
उसे एकाएक याद हो आया, दस वर्ष पूर्व उसने भी तो यही किया था, अपने बूढ़े बाप के साथ ।


(वरिष्ठ कथाकार, कवि, समालोचक । नारनौल, हरियाणा, भारत)