कविता

चन्दा मामा आता है
आ नभ पर छा जाता है
मैं आंगन में आती हूँ
घंटों उसे बुलाती हूँ
दूर-दूर वह रहता है
लुक- छिप खेल दिखाता है
मुझको बहुत छकाता है
आसमान के तारे सब
उसके हैं रखवारे सब
बदली में छिप जाता है
उनको खूब छकाता है
चांद दुलारे कहते वो
यों उसको फुसलाते वो
जहाँ-जहाँ वह जाता है
साथ लगे सब चलते हैं
अम्बर के इस आंगन में
खेल नये नित चलते हैं
ध्रुव मेरे भैया देखो तो
इसकी चाल परेखो तो
आंख मिचौली खेले वो
कभी पास ना आए वो
यूँ बदली में छिप जाए
झट बाहर आ मुस्काए
मुझको बहुत लुभाता है
चन्दा मुझको भाता है
मीठे गीत सुनाओ ना
चांद खिलौना लाओ ना
तरह-तरह से खेले वो
रूप बराबर बदले वो
कभी गोल-सी बिन्दी वो
कभी कागज की चिन्दी वो
कभी तरबूज है कटा हुआ
या संतरा है फटा हुआ
आड़ा-टेढा कटा हुआ
हरदम रूप बदलता है
नहीं एक-सा रहता है
रोज अलग यह रूप धरे
आसमान में यों बिचरे
कोई जान न पाता हो
ऐसा वह दिखलाता है
यहाँ-वहाँ इठलाता है
चन्दा की बुढिया नानी है
बुनती बहुत कहानी है
नन्हे- मुन्ने सो जाते
सपनों में जब खो जाते
परीलोक ले जाती है
परियों से मिलवाती है
परियों की भी नानी है
वही सबुज जो रानी है
लाल,हरी, नीली, पीली
सब परियाँ हैं सपनीली
रंग- बिरंगी परियाँ हैं
मानो वे फुलझड़ियां हैं
नदी- तलाबों- झरनों में
रातों में खूब नहाती हैं
वन-उपवन, ताल-तलैयों में
हम सबको वही घुमाती हैं
मधु- मीठे गीत सुनाती हैं
यहाँ- वहाँ उड़ जाती हैं
साथ हमें ले जाती हैं
मस्ती में सैर कराती हैं
रोज सवेरा होता जब
नभ में सूरज मुस्काता तब
सब छू मंतर हो जाती हैं
तब मम्मी हमें जगाती हैं
देखो चंदा भटका है
नीम गाछ पर अटका है
लम्बी लग्गी लाओ ना
खींच के उसे गिराओ ना
अपना फ्राक फैलाऊँगी
पकड़ उसे घर लाऊँगी
हम दोनों मिल खेलेंगे
चांद खिलौना पा लेंगे
मैय्या मुझे खिझाती है
चंदा कभी न लाती है
माँ को हम दिखलाऐंगे
चांद खिलौना लाएंगे
जय भैया आओ ना
तुतला- तुतला गाओ ना
तेरे मीठे गीतों से
मेरा मन हरसाता है
प्रियांशी
दशम वर्ग, मुंबई