• २०८१ पौष २८ आइतबार

नजराना कोभिड- १९ का

राखी वर्मा

राखी वर्मा

जब समाज, देश तथा विभिन्न राष्ट्रो के कण-कण वातावरण में
बुरे दुष्परिणामों का समावेश बुरे विचारों से
गगन मण्डल की तरह निनादित हो उठती है
तो उसका धुंधला छाया हर राष्ट्र के कोने-कोने में
मण्डराने लगती है और एक दर्दनाक चिख सुनने को मिलती है
जो अबतक बेइलाज एक और दो सुई के बल पे टीकी है ।

जीहाँ ये है कुछ नजराना कोभिड–१९ का
कोभिड –१९ का ये कहर
जिसके नाम से प्रभावित होती है हर एक पहर
कोई भी देश अगर है इसका भागी
शायद इसलिए सभी हो रहे हैं सहभागी
मिटा ना सका कोई भी देश
इस सहभागिता के दौड को जड से अबतक
गम्भीडता से सोचा जाए तो सहें और कबतक
कभी कोभिड, कभी पोष्ट–कोभिड
और अब ओमीक्रोन का खौफनाख कहर
बाह रे विपक्षी तुने भी उग्ला क्या खुब जहर
गुँज उठी इस दहशतकी कहर अब तो सारे जग में
विलीन हो गए अपने पराए बिना तेरहवीं के मिट्टी में
अभी भी यह दर्दनाक जंग जारी है
तुलसी और गिलोय के काढा के सभी आभारी हैं
इससे जीत गए तो सिकन्दर
और हार गए तो पिडो दिए जाएंगे मृत्युदर की गिनती में ।


राखी वर्मा, बिराटनगर
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