दो हजार बाइस तुम आओ,
जग में नूतन खुशियां लाकर ।
परम पिता की सदा दुआ हो,
जग की सुंदर बगिया पर ।
दो खुशियों की शुभ सौगातें,
सुख के सुंदर दीप जलाकर ।
दो हजार बाइस तुम आओ,
जग में नूतन खुशियां लाकर ।
खिलते रहें गुलाब सदा ही,
साँसों की अगणित शाखों पर ।
सुंदर अभिलाषाएं पूरी हों,
नित नवल वर्ष की राहों पर ।
दो हजार बाइस तुम आओ
जग में नूतन खुशियां लाकर ।
परमपिता की सदा दुआ हो
जग की सुंदर बगिया पर ।
आँधी बनकर ख़ुश्बू बिखरे,
भारत माता के दामन पर ।
सपनों की नइया तट पहुँचे,
नित नवल वर्ष के आँगन पर ।
दो हजार बाइस तुम आओ,
जग में नूतन खुशियां लाकर ।
परमपिता की सदा दुआ हो,
उनकी सुंदर बगिया पर ।
सुषमा दीक्षित शुक्ला, लखनऊ, उ०प्र०– 226017
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