• २०८१ भाद्र २५ मङ्गलबार

स्तब्ध मन

ज्योति कुमारी झा

ज्योति कुमारी झा

स्तब्ध मनमे आइग फुइक रहल छि
धियाके अन्तय देखी पश्चात्ताप करहल छि
रूप परिवर्तन करू सब आब
सीता नै काली बइन जाउ
मार जे आयत क्यो
सबके भक्षण केने जाउ

कतबो पढायब, बुझायब
नाटक करत परिवर्तन के
बेटिके सम्मान करब कहत
सोच रहत दमन शोषण ओकर जीवन के
हरदम अपग्रहमे जीवन
कत-कत अपन लोक सुरक्षा लेल ठार रहत
पत्थर हृदय, लोह शरीर बइन सबके सामना कर परत

त्यागी, दानी बड बनलौं
आब संहारकारी बनहे परत
चाहे सामना कर परत बलत्कारी सँ
या गर्दन दबौना,आइग लगौना सँ
क्रान्तिकारी योद्धा बइन
लडब अपन खौलल खुन सँ
मइरो जायब त नै कहे क्यो
कायर आ लाचार छल
गर्व स सब कहि सकय
बेटि लइडक शहिद बनल ।


ज्योति कुमारी झा
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