चलता रहा बेतहाशा
उस डगर की ओर..
जो मेरी मंज़िल न थी
बस यही दोष रहा
काँटो से भरे दामनको भी
हँसके गले लगाया
टटोलने लगे कोमल सी पंखुडिया
बस यही दोष रहा
ज़िन्दगी जीनेका सलिका न आया
बस यही दोष रहा
गम- एक ज़िन्दगीका
अश्क छुपाना न आया
यही दोष रहा
किसी के लिए खुशी तो
किसी के लिए रंज बनकर
रंजिसे जहां मेंखुदको सम्भाला
बस यही दोष रहा ।
नीता गुरूँग, गुवाहटी, असम, भारत
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