प्रेम ही प्रेम है अपनी नगरिया ।
सबसे अच्छी अपनी नगरिया ।।
सम्भालो अपनी धर्मशालाएं तुम,
हमतो चले अब अपनी नगरिया ।।
आने जाने के चक्कर में पड़कर,
बीत गई सारी अपनी उमरिया ।।
डगर तो बहुत हैं कच्ची और पक्की,
मगर सबसे अच्छी अपनी डगरिया ।।
फकीरोंका क्या दुनिया है मेला,
प्रेम में ही बीते अपनी उमरिया ।।
नरेश चन्द (सियान, उत्तरप्रदेश, भारत)
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