नहीं हारकर हम बैठेंगे,
दिखलाएंगे जीके
जितनी चादर फंटी हमारी,
मानेंगे हम सींके ।
हम लेंगे दो टीके ।। हम लेंगे दो टीके ।।
तमसनिशा के बाद स्वयं ही
प्रमुदित कल होता है ।
संघर्षों से जूझ मरे तो,
निश्चित हल होता है ।
झंझावातों से लड़ने में,
सीखे बहुत सलीके ।
हम लेंगे दो टीके ।। हम लेंगे दो टीके ।।
व्यवधानों की चट्टानों को,
संयम ने तोड़ा है ।
प्रतिकूल परिस्थितिका फिर से,
देखो मुखमोड़ा है ।
विकट परीक्षा पास कर गए,
नम्बर लाये नीके ।
हम लेंगे दो टीके ।। हम लेंगे दो टीके ।।
मानवता है धर्म हमारा,
रखते कभी न कर्जा ।
इसीलिए हम पाते आये,
विश्व गुरू का दर्जा ।
अखिल विश्वजी ने के सीखें,
हमसे आज तरीके ।
हम लेंगे दो टीके ।। हम लेंगे दो टीके ।।
महाशक्ति के दम्भी कपटी,
मेधा सम्मुख हारे ।
विध्वंस काल के हमही केवल,
हैं सच्चे रखबारे ।
दुनिया के चेहरे के रंग,
देख सफलता फीके ।
हम लेंगे दो टीके ।। हम लेंगे दो टीके ।।
(गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत, निवासी डॉ पाण्डेय मशहुुर साहित्यकार है ।)
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