कदे रुंख पै लटकाकर
कदे बम, गोला, बारुद म्हा पै गिराकर
कदे बुट सूं तो कदे- बन्दुक कै कुंदै सू
सांस रैयां तक मार-मारकर
कदे छाती में गोली ठोक कर
कदै बल्ती आग में झोंक कर
अनेक पीडादायी यातना देकर,
बै लूट्या हा म्हारा प्राण
म्हे सौंप्या हा मातृभौम नै
म्हारै माँ बापु लुगाइ टाबरां कै हिस्सै की अनमोल या म्हारी जान ।
उद्देश्य एक ई कि जियां भी हु सकै
राष्ट्रकी सुरक्षा अर बढै सम्मान ।
पण आज म्हे जद आपकी समाधीस्थल सूं- बारणै झांका
देख’र देश की अस्त- व्यस्त अवस्था
प्रश्न उठै है यो म्हारै मन में
म्हे हुया हा शहीद-
के यै दिन कै लियै ?
मुक्ति दिलावणै देश नै अनेक पीडावां सूं
म्हे मुक्त हुया हा छोडकर यो नश्वर शरीर
गम्भीर हुकै सह्या हा अनेक तीर
मातृभौम न चढादिया हा आपका
लहुलुहान कट्योडा सीर
पण अब देख चारुंकाणी
जनजन की पीर- मन हुर्यो है अधीर
निजु सवारथ कै लियै
देश पर जो कर रैया है आघात
जलमभोम नै नागी करणियां की
देख कै नीच ओकात
प्रश्न उठै है यो म्हारै मन में
म्हे हुया हा शहीद-
के यै दिन कै लियै ?
(साहित्यकार एवं व्यवसायी विराटनगर नेपाल)
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