चलो उन दिनों की कुछ बातें करते है
जब सीख रहे थे सम्बन्धों के
सबसे कोमल षड्यंत्र
जब देख रहे थे
धरती के नीचे बहती नदी का सागर से मिलन
जब बना रहे थे
बादल और चाँद के बीच एक ठिया
ताकि बरसात में पी जा सके साथ चाय
जब शिकायतों को भेजतें थे व्यंग्य की शक्ल में
और उड़ाते थे वायदे बनाकर
चलो उन दिनों की कुछ बातें करते है
जब याद रहता था हमें हमेशा
एक दूसरे का
जन्मदिन
पसंदीदा कपड़े
और पसंदीदा खाना
जब रास्तों को पता होता था हमारे स्लीपर का नम्बर
दरख़्त जानतें थे हमारी काया का व्यास
पक्षी आपदा और मौसम की घोषणा करते थे
देखकर हमें साथ-साथ
चलो उन दिनों की कुछ बातें करते है
जब मनुष्य का मनुष्य पर बचा हुआ था भरोसा
प्रेम था दुनिया का सबसे साहसी काम
विश्वास था जब परीक्षण से मुक्त
सन्देह था जब सबसे उपेक्षित
हमारा साथ था जब सूरज सा शाश्वस्त
चलो उन दिनों की कुछ बातें करते है
जब हवा बहती थी हमारे पसीने के आग्रह पर
बादल आतें थे तुम्हारे चेहरे की शिकन देखकर
बारिश होती थी हमें अकेला देखकर
फूल मुरझा जातें थे तुम्हें उदास देखकर
तितलियाँ उड़ जाती थी हमारी निजता सोचकर
चलों उन दिनों की कुछ बातें करतें है
चौराहों के पास होते थे अफवाहों के खत
गलियों के पास होता था जल्दबाजी का मनीऑर्डर
रास्तें अपने अपनी प्रेमिका को दिखाते थे हमारी शक्ल
धूप जब आती थी डेढ़ घण्टा विलम्ब से
साँझ जब होती थी पौने दो घण्टें पहले
दिन और रात छोड़ना चाहते थे
कुछ घण्टे कुछ मिनट न जाने किसके भरोसे
चलो उन दिनों की कुछ बातें करते है
क्योंकि
जब केवल बातें बच जाती है
उन्हें दोहरा-दोहरा कर ही करना होता है खतम
बातों का बच जाना
मनुष्य के बच जानें से कम खतरनाक नही है
इसलिए कह रहा हूँ लगातार
चलों उन दिनों की कुछ बातें करतें है।
(कई कृतियाँ प्रकाशित, प्राध्यापक, गुरुकुल काँगडी हरिद्वार भारत)
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