• २०८१ भाद्र २५ मङ्गलबार

सुनो तुम वहीं रहना

डॉ अनुराधा ‘ओस’

डॉ अनुराधा ‘ओस’

सुनो तुम वहीं रहना
जहां तुम खड़ेहो
आगे बढ़ोगेतो
मेरा वजूद पिघलकर
तुममे समा जाएगा
फिर तुम मुझे कैसे
निकालोगे स्वयं से
मैं नही चाहती
मैं तुम हो जाओ
तुम मैं हो जाऊं
बहुत कठिन लगता है
अपने अस्तित्व का
दूसरे में समा जाना
स्व को ढूढ़ना
उतना ही कठिन ।


(डॉ ओस हिन्दी की चर्चित कवि हैं)
[email protected]