• २०८१ असोज २९ मङ्गलबार

निः स्वार्थ प्रेम

प्रियँका झा

प्रियँका झा

अतीतक सब बात बिसरिक’
हम आजुरे आजुर लोक चाहैछी
अप्पन क्षण-क्षणके खुशी
समेट चाहैछी
अपन काँटक बगैचामेसँ
फूलक एक-एक कली
भर चाहैत रहैछी
अपना भीतरके खालीपनके आ
जीव चाहैत छी सदिखन
हर्षक संग वर्तमानमे।
मुदा
कतौ ने कतौ डर होइए
अपन अतीतसँ
अप्पन कएल गेल काजसँ
अप्पन परिचयसँ
अप्पन संगतसँ।
लेकीन तैयो
मोन ई कहैत अछि
हम गलत नइ छी
आ नइ ककरो लेल गलत सोचलौं
हम त बस ओकरासँ
निःस्वार्थ प्रेम केलौ
ओकरा पर विश्वास केलौ
तें ई प्रेम, विश्वास
ने कुनो पाप अछि आ
नइ कुनो अपराध।
हम ओकरसभक
प्रेमक गहिराइ देखि
स्वयं भ’ गेलौ कात आ
एक करादेलौ ओकरा सबके
जन्म जन्मान्तर लेल।


वृतिः मैथिली रंगकर्मी
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