• २०८१ पौष २९ सोमबार

ये महाभारत

गंगेश कुमार मिश्र

गंगेश कुमार मिश्र

ये युद्ध है
अद्भुत है ये
है ग्रन्थ ये
उलझे हुए,
कुरुक्षेत्र में लड़ते हुए
हुंकार यूँ, भरते हुए
सम्मान आहत हैं, जहाँ
अपमान सहते, वीर हैं
व्याकुल विवश, सब तीर हैं
रिश्तों में है, रिसते लहू

घायल है सब, क़ातिल है सब
मरती रही, इन्सानियत
रिश्तों में है, उलझा हुआ
चुपचाप सुनता, हाल है
धृतराष्ट्र अंधा, मोह में
लाचार है, बेहाल है
भाई को भाई मारता
गुरु-शिष्य, रण में रत हुए
लड़ कर मरे, तबतक लडे
लड़ते रहे, जबतक जीये ।।

 


(शिक्षक, स्वतंत्र लेखन, कपिलवस्तु)
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