• २०८१ माघ १० बिहीबार

म्हारो देश

बसंत चौधरी

बसंत चौधरी

देश मात्र कोई भूभाग कोनीं
न झरणै को पाणी
न सगरमाथाको ई
दमकतो कंवलो सबेरो ।

देश
हिरदै मांयको बो आवेग है
जिण में इयां खुल्लै
म्हारी जवानी
संसार कै सामनै बा ई हुवै
म्हारी कहाणी ।

म्हैं मानूं हूँ
वीरता को मोल
अर मानूं हूं
सौन्दर्य की मान्यता
पण खोलते रगत की बा कथा
मात्र जिकै में उबेडी है
म्हारै देश की महानता
बै तातैमें म्हें तातो हूँ
अर हूं म्हैं
बै रगत की लाली


(कवि चौधरी री ६ कविता संग्रह और २ निबंध संग्रह प्रकाशित हौ गी है । बाकी लार्ली कविता संग्रह ‘वसन्त’ ९ भाषा में प्रकाशित हुई है । आ मारवाडी कविता ‘वसन्त’ कऽ मारवाडी भाषा कऽ संकलन सऽ लईरी हऽ ।)
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