ना कटिहैं रतिया न बितिहैं दिनवा ।
एक बेर सुनि लेव का बोलै मनवा ।।
हे गोरी बगिया मा फूल मुसकाये
खेतन मा सरसों पेर पेर लहराये
महकै जँवार महकै घर अँगनवा ।
एक बेर सुनि लेव का बोलै मनवा ।।
अँखिया हमार बस तुहका निहारै
दूरिन से नेहिया कै नजर उतारै
बसि गइव हमरे तू बनि कै परनवा।
एक बेर सुनि लेव का बोलै मनवा ।।
बसंती बयार अब छूरी चलावै
काम धाम कौनौ मन ही न भावै
(स्वतंत्र लेखन, बहराइच, उत्तरप्रदेश, भारत)
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