लूट जाला सब खजाना, दोस्ती के वार से,
दुशमनी के बात कइसन, दोस्त मरलख प्यार से ।
मतलबी बनके सटे ला, फायदा से नाम ली,
काम होते काट देवे, नेह नाता आर से ।
जब समय आइल मदद के, खूब चालाकी भइल,
मोड़ लिहले मुँह छुपा के, लौटनी दूआर से ।
माथ धरके रो रहल बा, साँच बतिया जे कही,
मंथरा के राज बाटे, के बची मझधार से ।
हूक दसरथ के भइल आ, प्राण छूटल व्यर्थ ही,
दूर भइले फर्ज खातिर, राम जी घरबार से ।
लोभ लालच जे समाइल,घर भसक जाई सुनी
सोच के नीमन बनाई, घर बची तकरार से ।
बर्ष बीतल त्याग करके, दिन बितल संन्यास में,
नेहिया भाई भरत के, मोह ना दरबार से ।
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वीरगंज, नेपाल
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