• २०८१ माघ २७ आइतबार

नए सपने बुनें

इंदिरा शर्मा

इंदिरा शर्मा

चलो , आज शाम फिर दूर कहीं
नदी किनारे बैठें, गुमसुम न रहें
चलो, कुछ नए सपने बुनें ।
वो नदिया का छल- छल पानी
लहरों की चुन्नट में सिमटा
एक नया रजत ख़ामोश चाँद चुनें ,
चलो, कुछ नए सपने बुनें ।
भटके हुए हैं तारे गगन में
लहरों में तिरते हैं बेचैन हो कर
कुछ मधुर गीत उनके नाम लिखें,
चलो, कुछ नए सपने बुनें ।
लौटने लगे थके परिंदे नीड़ों में
उतर आया शाखों पे अँधेरा धीरे
उनके कुछ रेशमी जज़्बात सुनें,
चलो, कुछ नए सपने बुनें ।
कुछ कहता है रात का आलम मुझसे
पकड़े चांदनी का हाथ, फ़लक तक टहलें
दिल की धड़कनों को चुपचाप गुने,
चलो, कुछ नए सपने बुनें ।


इंदिरा शर्मा