• २०८१ मंसिर २९ शनिवार

आज शाम जब बरसा सावन

ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'

ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'

आज शाम जब बरसा सावन,
भीगा अपना तन-मन सारा ।
भ्रान्ति लिए बैठा हूँ अब तक,
सावन था या प्यार तुम्हारा ।

कान्हा ने राधा से पूछा,
तुम मुझको सच-सच बतलाना ।
भली लगी कब तुम्हें बांसुरी,
और अधर तक उसका आना ।

भीगे हम भी भीगे तुम भी,
शायद था सौभाग्य हमारा ।

कह देने से कम हो जाता,
दुविधा में क्यों जीते-मरते ।
तुम्हीं कहो उन सुखद पलों का,
मूल्यांकन हम कैसे करते ।

मनः पटल पर स्पर्शों का,
बार-बार ही चित्र उतारा ।

क्या जाने फिर कब बरसेगा,
दूर हुए तो मन तरसेगा ।
दिल की बात कहेंगे किससे,
दिल का क्या यह तो धड़केगा ।
जितना जो कुछ मिला भाग्य से,
हमने तुमने है स्वीकारा ।


ज्ञानेन्द्र मोहन ‘ज्ञान’