• २०८२ आश्विन २९, बुधबार

मेघ

अंशु झा

अंशु झा

मेघ युवाहो
बदमाशियों पर
उतर आया है,
कभीभी बेधड़क
दस्तक दे जाता है
और कर देता है सराबोर
अपने बडे– बडे बूँदों से ।
दावाग्निभी समेट चुकी है
अपनी उदण्डता को,
हो गई है सीमित
एक दायरे में ।
कोयल कीकूकभी
अब कमही गूँजती है
पहाडियों में क्यों कि
वो कर रही है एहसास पूर्णताकी,
और बनाचुकी है
अपना आशियाना कहीं
दरख्त पर लदे फल के पास ही ।
अषाढकी काली घटा
किसानों के मनसूबे को
भीगी- भीगी, सौंधी
खुशबू वाली हवा के सँग
पहुँचा रही आसमान पर ।


अंशु झा, काठमांडू नेपाल


कर्म

माँ से ही आइल फसलन के

बचपन के वो गीत !