तेरे सपनों का मोल, केवल तू ही तो जाने ।
अपने बनकर छलते जाएंगे, अपने ही सारे ।।
उस छल से फिर, विश्वासघात भी वो करगें ।
अपनों के खिलाफ, कान भी वही हैं जो भरेंगे ।।
वजूद मिट जाए तेरा, ऐसी कोशिश भी करेंगे ।
इकबार नही बार- बार, ये साज़िस रचेगें ।।
अड़चनें भी पैदा करेंगे, तेरे लिए हर डगर ।
दर्द दे तुझको, दावा खुद को ही कहेंगे मगर ।।
हर नवीन पथ, चलना तू बस संभल- संभल कर ।
हौसलों में प्राण भर, बन अपने जीवनकी तू सिकंदर ।।
मनीषा मारू, विराटनगर, नेपाल