• २०८१ माघ ९ बुधबार

जिन्दगी कि कलम

राखी वर्मा

राखी वर्मा

जिन्दगी के इस मोड पर
युंही निकल पडी
कुछ सिखने और लिखने की चाहत लेकर
अपनोंको छोडा,
शहरको छोडा
और गैरों से नाता जोडा ।

कभी किसीका बुरा कर ना सकी
क्योंकि अपनी जाति तो कायस्थ है साहब
जो कलमकी नींव से जुडी है
और देती है लेखा जोखा सालाना
श्री चित्रगुप्तजी महाराजको

जो उत्पन्न हुए थे ब्रहमाजी की कायासे
और उनके वंशज कायस्थ कहलाए
अनुभव मेरी कहती है
कि कभी किसीभी सख्स को
बेवजह परेशान मत करना साहब,
क्योंकि वो भी मासुम आप हि कि तरह
किसी सख्स का हि सख्स है
बिना वजह किसीको दुःख देकर
खुश कोई रहा नहीं,
क्योंकि इतिहास इसका गवाह है
जो अक्सर दोहराई जाती है,
और ये पृथ्वी गोल है साहब
पारी तो सभी की आती है ।


राखी वर्मा, उपप्राध्यापक, बिराटनगर
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