ये जो
तुम्हारे चेहरे पर टकी
कलाकार की आंखें हैं न
कहती सी कुछ मौन
बुनती ढेरों ख्वाब
धुएं से
थमा देती है
उंगलियों को तूलिका
स्पष्ट होते कई चित्र
कैनवास पर
कुछ धुंधले, कुछ उभरते
इन दोनों के मध्य का शून्य ही
कहता बहुत कुछ
अनकहा सा
छोड़ता कसक
चिरकालिक
अन्तस् के इस पार से
उस पार।
# डॉ वन्दना गुप्ता
(शिक्षिका एवं लेखिका कई कविता संग्रह प्रकाशित, सिलीगुढ़ी पश्चिम बंगाल, भारत)
vandnagpt3@ gmail. com