• २०८१ बैशाख ७ शुक्रबार

निर्णय

कंचना झा

कंचना झा

काठमांडू जएबाक क्रममे निलेश सँ एकबेर फेर भेंट होयत से कहाँ सोचने छलहुँ । जनकपुरके रामानंद चौक पर हम माइक्रो बसके चलैक इंतजारमे टहैल रहल छलहुँ कि अचञ्क्केमे निलेश पर ध्यान गेल ।निलेशके आँखि हमरा निहारि रहल छल । निलेश कारी पैंट ब्लु शर्टमे आइयो ओतबै हैडसम आ स्मार्ट लागि रहल छलाह जेहन पन्द्रह साल पहिने । ओहो लपकि कऽ हमरा दिस बढ़लाह आ हमहुँ हुनका दिस पएर बढ़ा देलियैन । पन्द्रह बरख पहिनेके बात रहितै तऽ किन्हुँ नहि मुदा कहै छै न जे धीरे धीरे घाव कम भऽ जायत अछि । मनक घाव के टिस रहि जायत अछि आ लोक केहनो अवस्था सँ समझौता कऽ लैत अछि तहिना हमहुँ समझौता कऽ लेने छलहुँ । आब कथिके रंज ?
हम आ निलेश एक दोसरके एकदम नजदीक आबि गेल रहि कि ततबेमे माइक्रो वाला कहलक जे–‘माइक्रोमे किछ खराबी आबि गेल अछि । किछ समय लागत ताहि सँ सभ कियो किछ खा पी सकैत छी ।’
पुरे पन्द्रह सालके बाद हम आ निलेश एकठाम छी तऽ पहिल बेर चुप्पी निलेशे तोड़लाह आ बजलाह जे–‘चलु एक कप्प चाह पीबैत छी ।’
हुनक ई प्रस्ताव पर मोने मोन हम हँसलहूँ जे–आई निलेशके मोन होइत अछि हमरा संगे चाह पीबाक ।
ओना हुनक अहि प्रस्तावके मानवाक लेल हम तैयार नहि छलहुँ मुदा जहिना निलेशके हमरा सँ बात करवाक ईच्छा छल तहिना हमरो छल से हम सहर्ष हुनक प्रस्तावके स्वीकार कऽ लेलहुँ । आ पन्द्रह साल पहिले जहिना निलेश संगे चुपचाप चाह पीबैत छलहुँ तहिना आइयों हुनक संग विदा भऽ गेलहुँ चाहक दोकान दिस
ओना हमरा जनकपुरके कोनो खास आइडिया नहि अछि चलैत निलेश कहलाह ।
‘तहन चाह कोना पियायब ?’ हम हँसिक कहलहुँ ।
अहिठाम किछुक दूरी पर चाहक दोकान अछि जानकी मंदीर जेबाक बाटमे । ओना तऽ भोरक समयमे भीड़ बहुत रहैत अछि तथापि चलु देखैत छी हम कहलहुँ ।
निलेश माइक्रोवालाके जानकारी दए देलाइथ जे हम सभ किछुक दूरी पर चाहके दोकान पर छी । गाड़ी ठीक भÞऽ जाई तऽ एकबेर मीस कॉल कऽ देब । निलेश हमरा ईशारा कऽ देलाइथ आ विदा भऽ गेयलहुँ चाहक दोकान दिस ।
पाँच मिनेटके अहि बाटमे हम दुनू चुप्पे रहलहुँ जेना शुरुआत कोनठाम सँ करी से नहि फुरा रहल छल ।
लिअ आबि गेल चाहक दोकान–हम कहलहुँ ।
अहिठाम तऽ बहुत भीड़ अछि–निलेश कहलाह ।
हँ भोरहरवा पहर कऽ प्रायः जनकपुरके पत्रकार सभ अहिठाम चाह पीबैत छथि आ राजनीति पर चर्चा परिचर्चा सेहो होइत अछि । आइ तऽ कनि कम अछि । नहि तऽ पूरा देशके राजनीति अहिठाम तैयार होइत अछि से कहि हम हँसि देयलहुँ ।
लालचंद जे कि चाहके कप्प उठाबैत छल हमरा देखतहि बाजल– अरे रश्मि दैया । बैस … चाह लेबहिन ?
हँ दुटा चाह नीकगर । लालचंद इ टेबुल साफ कऽ दहिन ।
ओ गीत गुनगुनाबैत टेबुल पोछलक आ हाँसैत कहैत गेल– दैया तोरा कहियो खराप चाह देने छियौ से ?
हम निलेशके बैसि जेबाक कहि आपना सेहो बैसि गेलहुँ ।
अहाँके चाह वाला सभ निक जकाँ चिन्हैत अछि–निलेश कहलाह
हँ अहिठामक बेटी छी । एनाइ गेनाई लागल रहैत अछि ताहि सँ प्रायः अहि दोकानके जतेक व्यक्ति छथि सभ चिन्हैत छथिन । आ चाह सेहो निक बनाबैत छथि ।
हँ हल्लुक साँस लैत निलेश बजलाह आ बैसि गेलाह । हम दुनू आब एकदोसरके आमने सामने छलहुँ । हम पर्स सँ रुमाल निकालि अप्पन मुँह पोछलहुँ आ निलेश दिस ताकैत बजलहुँ– ‘जनकपुर किछ काज सँ आयल छलहुँ ?’
हँ गाममे आब कियो नहि अछि निलेश कहलाह ।
माए कहाँ छथिन से ?
ओ भायजी संगे दिल्लीमे रहैत छथि । हम तऽ कहने रहि जे हमरे संगे रहुँ मुदा नहि मानलिह । आई तक हमरा सँ नाराज छथि परिवारके सभ लोक । कियो माफ नहि कऽ सकल । शायद अहाँ सेहो नहि कयलहुँ अछि माफ हमरा । घरके देखभाल एखन टुनटुन काका करैत छथि । घरके मरम्मत करेवाक लेल आयल छलहुँ ।
बेश अहाँ केना छी रश्मि ? हम हुनक ई प्रश्न पर किछु विचलित तऽ भेलहुँ मुदा तुरंतै संम्मभरी सेहो गेयलहुँ । हम तऽ ठीक छी मुदा अहाँके चेहराके चमक हेरा गेल । बुहत दुबरा गेल छी । खेनाई समय पर नहि खायत छी की ?
हमरा लेल के बैसल अछि जे ध्यान देत ? हमरा दिस देखैत बजलाह आ… अहाँ की कऽ रहल छी ?
हँ किछ तऽ सहारा भेट न जायत अछि लोकके । एकटा दरबज्जा बंद होइत अछि तऽ भगवती हजारों दरबज्जा खोलि दैत छथिन । नहि बुझल ? हम कहलहुँ ।
ककरो चाहने कि हेतै ? जकरा जे हेबाक होइत अछि । जे भेटवाक अछि भेंट जाइत अछि कि ? निलेश बुझी गेलाह जे ई उलहन हम हुनके दऽ रहल छियैन ओ किछु नहि बजलाह आ टेबुल पर नजरि टिका देलाइथ की लालचंद चाह लऽ हाजिर भऽ गेल ।
ले दैया चाह । दैया आई तोहर आवाज नहि छलहुँ रेडियोमे ? ओ चहकैत बाजल ।
हँ हम कनि काठमांडू जा रहल छी ताहि सँ ।
काठमांडू कैला से दैया ?
आबिक देखेबौ तोरा एखन तौं जो । ओ चलि गेल ।
हम चाहक चुस्की लेलहुँ आ वर्तमान सँ अतीतमे जाय लगलहुँ । विवाहके किछु दिनक बाद निलेश संग पहिल बेर काठमांडू जेयबाक आनंदके बर्णन नहि कऽ सकैत छी ततेक उत्साह छल । दसमा पास केने छलहुँ कि दाई बीमार पडि़ गेलीह आ एकमात्र पोती हम तऽ हमर विवाह आ जमाईके देखवाक सेहनता पुरवाक मनोकामना कहि पुरा नहि होयत से कहि जबरदस्ती हमर विवाह करवाक फैसला भेल छल । निलेश गतातिमे पड़ैत छलाह मुदा ओ सभदिन बाहर रहलाह ताहि सँ अहि विवाहमे हुनक हामी पर किनको ध्यान नहि गेल । एकटा चीठ्ठी दै हुनका बजावौल गेल आ जबरदस्ती हमरा सँ विवाह भऽ गेल । अहि जबरदस्तीके विवाहमे हमर कोनो गलती नहि मुदा सजा हमरे भेंटल जे जिंनगीके अहि बाटमे एसगर सफर कऽ रहल छी ।
अहाँ कियाक काठमांडू जा रहल छी ? कोनो खास प्रयोजन अछि ?
हँ एकटा सम्मान अछि । प्रज्ञा प्रतिष्ठान दिस सँ । ओहे ग्रहण करवाक लेल जा रहल छी । चाहक चुस्की लैत हम बजलहुँ ।
एसगरे जाइत छी आ…. की….. कियो संगे सहो ?
नहि एसगरे जाइत छी । संगी बीच मझधारमे छोडि़ दैत अछि । हमरा किनको पर विश्वास नहि । अपने अन्यथा नहि लेब । निलेश हमर बातके चोट सँ परेशान भेलाह मुदा हम वास्ता नहि कयलहुँ । आई निलेश सामने आबि गेलाह यानी हमर अतित हमरा सामने अछि । हम केना काबू राखि सकैत छी । जे हमर अपमान भेल अछि । जे तिरस्कार हम सहने छी । जतेक पीड़ा जतेक गहीर चोट हमरा देल गेल अछि । जेना किनको नहि रहैत हमरा बीच बाटमे छोडि निलेश पल्ला झाडि़ देने छल ओ तिरस्कार ओ पीड़ा ओ दर्द ओ बेसहारक समय हम कोना बिसैर जायब आ कोना माफ कऽ देब निलेश के ?
हम तऽ बहुत बेशी पढ़लहुँ लिखल नहि छलहूँ । हमर जीवन यापन कोना होयत ? ई पहाड़ सनक जिंनगी हम कोना जीब ? अहि बातके निर्णय करैवाला हमर पति मात्र ई कहि हमरा छोडि़ देलक जे तु हमरा काबील नहि । हमरा संगे पार्टीमे नाचि नहि सकैत अछि । हमरा संगी सबके संगे भदा मजाक नहि कऽ सकैत अछि । कोनो काज नहि कऽ सकैत छी बाहर तऽ एहन पत्नीके हमरा कोनो काज नहि । ओहि निलेशके हम कोना माफ कऽ सकब ?
जे अहि पन्द्रह सालमे एकहुँ बेर पलटि कऽ हमरा दिस नहि तकलक । हम जीबैत छी कि मरैत छी ? हम कोना अप्पन जोगाड़ कऽ रहल छी । हम कोन कोन जतन नहि केने छी आई अहिठाम तक पहुँचवाक लेल । कतके आदमीके लोभी नजरि सँ अपनाके बचाकऽ , लोकके ताना सुनिके ,एसगर रहिके जे सभ भोगने छी ओकर हिसाब के देत ? ओ पन्द्रह साल जे हम तिल तिल क जरलहुँ , हर दिन निलेशके इंतजार कयलहुँ जे कहियो निलेश अएताह आ कहताह चलु जिंनगी एकबेर फेर सँ शुरु करेत छी मुदा तेहन किछ नहि भेल तऽ ओहि निलेशके कोना माफ कऽ सकब ?
रश्मि ……रश्मिंं… कत्तय हेरा गेयलहुँ ?
हँऽऽऽ हम जेना हेरायल कहलहुँ –“ किछ कहैय चाहैत छी की ? अरे अहाँके चाह खतमो भऽ गेल आ हमर बांकिये अछि । अहाँके तऽ बड़ा समय लागैत छल चाह पीबामे ।”
समयके संगे बहुत किछु बदलि जायत अछि रश्मि – ओ कहलाह ।
हँ… हम कहैत रहि जे माए ,भैया ,भौजी सभ अहाँके बुहत याद करैत अछि । बहुतेबेर हमरा कहलाथि जे अहाँके लियौन करा लेबाक मुदा हम बहुत लज्जित छी । हम कोना अहाँके लेबाक लेल आबि जेयतहुँ ? इ कहि ओ चुप्प भऽ गेलाह आ चाहक कप्प दिस ताकैत बजलाह जे अहाँ पहिने झट सँ चाह पीब लेत छलहूँ । उल्टा भऽ गेल आइ चाह रखले अछि । ई कहि अप्पन दिस सँ माफी मांगैत ओ बिहुँसि पड़लाह । ओ अप्पन अतितके बिसरि सकैत छथि मुदा हम नहि ।
हम मानलहुँ , कहलहूँ जे अहाँ चाहब तऽ हम पढि़ लेब । हम अपना आपके अहाँके अनुरुप बदलि लेब । गाम समाजके लोक हमरा जीबै नहि दैत । हम बहुत दुहाई देने रहि । हम घरके एकटा कोनामे पड़ल रहब अहाँके टहल टिकोरा करब मुदा अप्पना सँ दूर नहि करुँ । जीवन संगीनी नहि , टहले टिकोरा करैवाली बनि सहि मुदा अपना संगहि रहै दिअ । हमर एक नहि सुनल गेल । जबाबमे प्रश्न आयल घरके काजके बाहेक की कऽ सकैत छी ? अरे हमरा मोन सँ विवाह भेल रहित तऽ ओ कोनो काज कऽ सकैत छल ? आइ ओ हमरा संगे कदम सँ कदम चलि सकैत छल । हमर काठमांडूमे अप्पन घर रहितै । लोक सभ हमर पत्नीके दखतहि तऽ कहितै जे देखियो फल्लाके कनिया केहन निक अंग्रेजी नेपाली बाजेत अछि । हमर एकटा अलगे शान रहैत । मुदा अहाँ कऽ सकैत छी घरके टहल टिकोरा जे हमरा नहि चाहि । एहन टहल टिकोरा अंगना निपनाय पोतनाय अप्पना नैहरमे करब । हमर पीछा छोडि़ दे कहि निलेश जोर सँ किवाड़ बंद कऽ बाहर निकैल गेल ओहि निलेशके कोना माफ कऽ सकबै ?
आई अहि मोड़ पर अहाँ संग भेंट होयत से नहि सोचने रहि । हमर चाह खतम भऽ गेल हम उठि गेलहूँ आ लालचंदके पाय देबै लगलहुँ । ओ जिद करैत बजलाह हम दैत छी । मुदा हमरा सँ हारि गेलाह पाय हम अपहि देलहुँ ।
रश्मि….. रश्मि…
हँ …. हँं…..
की ततबेमे माइक्रो बलाके फोन आयल गाड़ी बनि गेल आबि गेल जाउ । दुनू गोटे भारी मोन सँ विदा भेलहुँ ।
बाटमे निलेश बहुत हिम्मत जुटाकऽ कहलाह –रश्मि….. हमरा….. माफ कऽ दिअ । एकछा नव शुरुआत कऽ सकैत छी । चलँु संगे रहैत छी ।
हम गंभीर मुदा दरदन उठाके अंतिम फैसला करैत कहलहुँ । नहि हमर अहाँके रस्ता एक नहि अछि । बहुत देर भऽ गेल अछि निलेश । हम एकटा बाट बहुत मुश्किल सँ बनौने छी । हमर अपन बनायल रस्ता सँ भटैक कऽ हम किनको संगे नहि जाय चाहैत छी । हम एसगरे नीक छी । फेर कोनो दिन जँ बाटमे भेंट जायब तऽ अहिना एक कप्प चाह संगहि पी लेब । मुदा चारि कदम संगे नहि चलब । आ हम आगाके सीट पर जा बैसि गेयलहूँ । निलेश सिंगल सीट पर आ गाड़ी अप्पन गणतव्य दिस दौड़य लागल ।


(उप प्राध्यापक एवम् रेडियोकर्मी)
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