एक कविता लिखी थी तुम्हारे लिए
जिसका पाठ सुनना था तुमसे
कुछ जंगली फूल लाया था तुम्हारे लिए
उन्हें गूँथना था तुम्हारी वेणी में
तुम्हारी एक मौलिक किस्म की गंध थी मेरे पास
जिसे ले जाना चाहता था समन्दर तक
एक कप चाय पीनी थी तुम्हारे साथ
रसोई में खड़े होकर
बिस्तर पर ऐसे बैठना था, न पड़े एक भी सलवटें
और बैठा रहूँ ठीक तुम्हारे सामने
कुछ नदी किनारे मिले छोटे पत्थर सौंपने थे तुम्हें
ताकि तुम सूँघ कर बता सको उनका द्रव्यमान
एक सूखी जंगली वनस्पति का टुकड़ा देना था तुम्हें
जिसे तुम लगा सकती थी अपने जूड़े में
पूछना था तुमसे
समय का समास
अपेक्षा का तद्भव
प्रेम का विशेषण
रिश्तों का सर्वनाम
बताना था तुम्हें
तरलता का बोझ
पलायन और अनिच्छा में भेद
डर का, कायरता से इतर का संस्करण
खेद का मनोविज्ञान
बस, इन्हीं छोटी–छोटी ख्वाहिशों से डर के
ईश्वर ने सही वक्त पर मिलने नहीं दिया तुमसे
गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार