• २०८१ मंसिर १७ सोमबार

जो बीबी से धकियाये गये वो नामी हुये

मुकेश नेमा (भोपाल)

आदमी की गाड़ी सैल्फ स्टार्ट होती नही कभी । धक्का लगाना पड़ता है । जिन्हें भी धक्के लगे । खासकर जो बीबी से धकियाये गये वो नामी हुये । ये जो कहावत होती है ना आपने कि हर सफल आदमी के पीछे एक औरत होती है वो सौ फासदी सही है । पर इस कहावत से धक्का गायब है । सोच कर देखें तो आमतौर पर हर आदमी के पीछे एक औरत तो होती ही है पर कामयाबी की सीढ़ी वही चढ़ते हैं जिनकी औरतों ने उन्हें धक्का दिया हो ।

मुझे पूरा संदेह है कि सिद्धार्थ को बुद्ध बनाने मे यशोधरा की भूमिका भी रही ही होगी । एक अपने में ही डूबे, दार्शनिक को किसी राजा की बेटी यशोधरा कैसे बर्दाश्त कर सकती थी । संभव है यशोधरा की रोज–रोज की नसीहतों से ही उकता कर यह राजकुमार उन्हें सोता छोड़ चुपचाप घर से निकले और भारतीय परम्परा अनुसार घर से निकले या निकाले गये पुरूषों की ही तरह महापुरुष होकर प्रसिद्ध हुये ।

अब अपने तुलसीदास जी को ही देख लें । रत्नावली जैसा रतन ना होता उनके जीवन में तो क्या वो रामचरित मानस रच पाते । हरगिज नही । राजापुर का ये भला, सीधा सादा आदमी बाकी सारे भले, नये–नये शादीशुदा लोगों की ही तरह अपनी सुंदर पत्नी पर आसक्त था । इतने दीवाने थे ये अपनी रूपसी पत्नी के कि उसके मायके जाने पर बदहवास होकर, भरी बरसात में उससे मिलने निकल पड़े । ससुराल तक जाने के रास्ते मे पड़ी बाढ़ भरी नदी एक अकडे मुर्दे को नाव बना कर पार की और जब ससुराल का दरवाजा नही खुला तो अपनी पत्नी के कमरे की खिड़की से लटके अजगर को रस्सी बनाकर कमरे तक चढ़े । वो तो भला हो रत्नावली का जिसने अपने प्रेमी पति को धिक्कारा । उलाहना दिया कि इस हाड़ माँस के शरीर के बजाय यदि राम से इतनी ही लौ लगा ली होती तुमने तो बेड़ा पार हो गया होता तुम्हारा । रत्नावली के इस धक्के से तुलसीदास उबरे । राम से नाता जोड़ बैठे, खुद तो भवसागर पार हुये ही अनगिनत और लोगों को भी पार कराने के निमित्त बने । सोच कर देखिये उस रात रत्नावली धक्का नहीं देती तुलसीदास को तो क्या आज आप और हम उन्हें जानते । राम को घर–घर पहुँचाया रत्नावली के उस धक्के ने । तुलसीदास इतने भले मानस थे कि वो उस धक्के का आभारी होना भूले नही । अपनी रची पोथियों को रत्नावली से मिलते जुलते, दोहावली, कवितावली, गीतावली जैसे नाम दिये ताकि आने वाले लोग धक्के की महिमा को याद रख सके ।

एक और बडे आदमी हुये थे । हमारे यहाँ ही नही होते बडे आदमी । बहुत बार बाहर भी हो जाते है । यूनान मे हुये इस बड़े आदमी का नाम था सुकरात । बीबी के धक्कों से इनका भी नाम हुआ । दर्शन बघारने वालाें से बीबियाँ तंग आ ही जाती हैं । तंग बीबियाँ धक्के तो देंगी ही । एक बार का वाकया है ये घर के बाहर, अपने चेले चपाटियों के बीच बैठे बाते बना रहे थे । बीबी की बातें सुन नही रहे थे । धक्का देने मे प्रवीण इनकी पत्नी, जेंथीफ जली–कटी सुनाती धमधम करती आई और इनके सर पर ठंडे पानी से भरी बाल्टी उडेल कर लौट गई । भीगे बिल्ले बने सुकरात सोच मे डूब गये और फिर उन्होंने ऐसी–ऐसी ज्ञान की बातें कहीं जो अब भी लोग सच मानते हैं । उनकी बातें सुनकर वहाँ का राजा तक हैरान हो गया । ज्ञान की बातें सबसे ज्यादा राजा को ही परेशान करती हैं। उसने सुकरात को पकड़ मंगाया । जेल भेजे गये सुकरात । ज्ञानियों के साथ और किया भी क्या जा सकता है । फिर एक दिन सुकरात को दो विकल्प मिले । जहर पीयें वो या घर लौट जायें । सुकरात और अधिक धक्कों, कड़वे प्रवचनों के लिये प्रस्तुत नही थे सो उन्होने जहर का प्याला चुना । और अमर हो गये ।

अब्राहम लिंकन की बीबी मैरी टॉड उनके साथ बहुत आत्मीयता से पेश आती थी । वे बहुत बार लिंकन को अपनी छड़ी की सहायता से घर से खदेड़ती देखी गई थी । एक बार सुबह नाश्ते की मेज पर वह लिंकन से इतनी नाराज हो गई कि उसने सभी के सामने लिंकन के मुंह पर गर्म चाय का प्याला दे मारा, लिंकन शांत बने रहे और मुँह साफ कर अपने ऑफिस के लिये निकल गये । लिंकन के एक दोस्त ने लिखा है कि शादी का दिन वो आखरी दिन था जब लिंकन को खुश होते हुये देखा गया था । अपनी बीबी की वजह से लिंकन घर जाने में घबराते थे और ऑफिस में ही बने रहना पसंद करते थे । अब आदमी ऑफिस में रहेगा तो काम करेगा ही । अमेरिका के सौलहवें राष्ट्रपति लिंकन की इसी कर्मठता से वह अमेरिका बना जिसका पूरी दुनिया मे नाम है । और इसके लिये अमरीकियों को मैरी का शुक्रगुजार होना ही चाहिये ।

लिंकन से ही मिलता जुलता मामला है क्लिंगटन का । आपको क्या लगता है कि बिल क्लिंगटन ऐसे ही सेंत मेंत में अमेरिका के राष्ट्रपति हो गये । उन्हें राष्ट्र का पति बनाया उनकी अपनी पत्नी ने । जो पढ़ा और सुना गया है वो तो यही बताता है कि हिलेरी उन्हें नियमित रूप से पीटा करती थीं । पिटे–कुटे क्लिंगटन सरपट दौडे और राष्ट्रपति बनने तक दौड़ते ही रहे ।
मुझे पूरा यकीन है जितने भी बडे–बडे लोग हुये है, अपनी–अपनी बीबी से धकियाये गये लोग है । आदमी की फितरत ही है, वो बिना धकेले कुछ कर ही नही पाता । कुछ करना ही चाहता कोई आदमी । ऐसे में समझदार बीबियाँ धक्का देती है और अपने खाविंद को बड़ा काम करने लायक बनाती हैं ।

बुद्ध, तुलसीदास, सुकरात और मुझमें यही अंतर है । मेरी सुंदर पत्नी ने मुझे धक्का नही दिया । तब नही दिया जब देना चाहिये था । दे देती तो मेरा भी उनके आसपास का नाम होता ।